स्वास्थ्य विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला संपन्न

मुनिकीरेती। आरोग्य भारती उत्तराखंड की ओर से आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषय पर आयोजित कार्यशाला का समापन हुआ। जिसमें 59 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। इस कार्यक्रम में कुल 6 सत्र पर चर्चा की गई।
रविवार को स्वामीनारायण में अयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के समापन सत्र में विंडलास बायोटेक लिमिटेड कंपनी के अध्यक्ष अशोक विडलास कहा कि आरोग्य भारती की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में एक अति महत्वपूर्ण विषय का चयन किया है। मनुष्य के जीवन में धन एवं कर्म का बहुत महत्व है। लेकिन इन सभी के लिए स्वास्थ्य अनिवार्य रूप से आवश्यक है। शारीरिक स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य पर बहुत कार्य हुआ है। यह विषय ऐसा था जिसकी खोज में विदेशी लोग अपने आध्यात्मिक उत्थान एवं शांति की खोज के लिए के लिए भारत में आया करते हैं। आध्यात्मिक स्वास्थ्य को अत्यंत कठिन स्वरूप में प्रदर्शित किया गया है इसको समझाना अभी तक अत्यंत कठिन एक विषय के रूप में था इस विषय को सरल करके जन सामान्य तक उसके आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए पहुंचाना अति आवश्यक है।
स्वामी अद्वैतानंद ने गीता में आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषय पर अपना व्याख्यान दिया सत्र दो में डॉक्टर राजेश शर्मा ने आयु के साथ आध्यात्मिक स्वास्थ्य के बदलते प्रतिमान विषय पर अपनी बात रखी और जीवन के अलग-अलग दशकों में हमें क्या करना है? इस विषय पर प्रयोग बताया उन्होंने कहा कि जीवन की समस्त व्याधियों तुरंत उत्पन्न नहीं होती हैं। बल्कि हम जैसा ही अपने इस जीवन में पूर्व में कार्य करते हैं। उसके परिणाम स्वरुप ही होती हैं जैसे डायबिटीज ब्लड प्रेशर उन्होंने कहा कि गलत और सही के बीच में एक संतुलन आवश्यक बनाएं रखना चाहिए। उम्र के अनुसार भौतिकता का संतुलन भी अत्यंत आवश्यक है।
सत्र तीन में एम्स की कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर भानु दुग्गल ने हृदय रोगों में आध्यात्मिक स्वास्थ्य का क्या प्रभाव होता है। इस विषय पर प्रयोग को बताया उन्होंने कहा कि वर्तमान में हार्ट अटैक जैसी चीज जो 50 वर्ष के बाद होती थी अब आजकल 30 वर्ष के लोगों में भी हार्ट अटैक की सूचनाओं आ रही है हमें उससे बचने के लिए अपने बच्चों को शारीरिक स्वास्थ्य के विषय में और उसके साथ-साथ सही और गलत की पहचान धार्मिक शिक्षा भी सीखना चाहिए। माता-पिता दोनों ही जिस परिवार में कार्यरत हैं। बच्चे की पारिवारिक शिक्षा अधूरी रह जा रही है। ऐसे बच्चे भविष्य में जाकर पारिवारिक संपर्कों को सूत्रोंको जोड़ने में असमर्थ हो जा रहे हैं।
डॉ डीके श्रीवास्तव ने कहा की रात 10:00 बजे से प्रातः 3:00बजे तक की निद्रा आध्यात्मिक स्वास्थ्य का भाग है। हर 15 दिन पर व्रत रखना शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। शरीर स्वस्थ है तो मन भी स्वस्थ रहता है।
डॉ राजेश चंद्र ने कहा की योग अध्यात्म प्राणायाम यह सभी सभी को जीवन में करने चाहिए। मन के अंदर से गलत भावनाओं को निकाल कर सही भावनाओं को प्रवेश करना भी आध्यात्मिकता का एक भाग है। मनुष्य को सदेव छात्र का भाव रखना चाहिए। जिससे वह सीखने की परिस्थितियों बने रहे।
डॉक्टर गणेश राव ने कहा कि सभी रोग मनोदैहिक हैं। वह तनाव के कारण भी हो सकते हैं, अगर मन प्रसन्न है, तो रोग शरीर को प्रभावित नहीं करते हैं। प्राण को आयाम देना ही प्राणायाम है और सभी को प्राणायाम करना चाहिए मन से नकारात्मक विचारों को दूर रखकर सकारात्मक विचारों को डालना ही आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का आधार है।
सत्र चार में समस्त प्रतिभागियों ने अध्यात्मिक विषय पर अपने अनुभवों को अभिव्यक्त किया।
सत्र पांच में डॉक्टर रूपचंद दास साहेब ने आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए पंचकोश को आवश्यक माना और उन्होंने कहा कि जैसा खाए अन्न वैसा हो मन। सात्विक अन्न का ग्रहण करना चाहिए गुरुजनों की वाणी में मार्ग होता है, और उस पर चलने से कल्याण होता है। सभी को समभाव से देखें अपने दायित्वों की पूर्ति करना चाहिए। और कर्तव्य करते हुए अपने दायित्व की पूर्ति करना ही आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का एक तरीका है।
डॉक्टर राकेश पंडित ने बताया कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य में सकारात्मक की आवश्यकता विषय पर अपना व्याख्यान दिया उन्होंने कहा कि आत्म चिंतन करना संतोष का भाव रखना। दूसरों की प्रसन्नता का ध्यान रखना सफलता परेशानियों में स्वयं को सम्मिलित करना स्वयं को आध्यात्मिक बनाए रखने में एक मुख्य भाग अपनाता है।
मुंबई के डॉक्टर गणेश राव ने अष्टांग योग में आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषय पर अपने विषय को रखा।
इस दौरान डॉक्टर विनोद कुमार मित्तल, डॉक्टर संजय कुमार त्रिपाठी, डॉक्टर विकास सूर्यवंशी, डॉ शशि कंडवाल, डॉ देवेश शुक्ला, डॉ राहुल तिवारी, डॉ एसपी सिंह, डॉ शुभ, डॉ अनिल, डॉ गणेश, डॉ राम ने मौजूद रहें।