June 21, 2025

“शिक्षक साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं”: कथन चाणक्य

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प्रतिवर्ष 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। टीचर्स डे या शिक्षक दिवस गुरु-शिष्य को समर्पित दिन है और गुरु-शिष्य की परंपरा तो भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। अत: जीवन में शिक्षकों का महत्व समझाने के लिए ही इस दिन को मनाया जाता है।

हमारे जीवन में वैसे तो माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। अत: यह कहा भी जाता है कि हर बच्चे के जीवन के सबसे पहले गुरु माता-पिता ही होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली तरीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं तथा हमारे जीवन को ऊंचाइयों पर ले जाने का श्रेय भी शिक्षकों को ही जाता हैं।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारतभर में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था, उनके अध्यापक पेशे के प्रति उनके प्यार और लगाव के कारण उनके जन्मदिन पर पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

राधाकृष्णन का शिक्षा में बहुत भरोसा था। वे एक राजनयिक, शिक्षक और भारत के राष्ट्रपति के रूप में भी प्रसिद्ध थे। ‘गुरु’ का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। समाज में भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापक से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।

इस दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उनकी जयंती पर याद कर मनाया जाता है।शिक्षक दिवस पर स्कूलों में तरह-तरह के कार्यक्रम, उत्सव, धन्यवाद और स्मरण की गतिविधियां होती हैं। बच्चे व शिक्षक दोनों ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। स्कूल-कॉलेज सहित अलग-अलग संस्थाओं में शिक्षक दिवस पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्र विभिन्न तरह से अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, तो वहीं शिक्षक गुरु-शिष्य परंपरा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं। स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती है। स्कूल और कॉलेज में पूरे दिन उत्सव-सा माहौल रहता है। दिनभर रंगारंग कार्यक्रम और सम्मान का दौर चलता है और कई स्कूलों में सीनियर छात्र-छात्राएं शिक्षक की जगह लेकर जूनियर छात्र छात्राओं को पढ़ाते हैं कहा जाए तो इस दिन शिक्षकों को आराम करने का भी मौका मिलता है।

गुरु-शिष्य संबंध- गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने के लिए प्रेरित करता है। आज शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षकों को भी वह सम्मान मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।

आज के युग में कई शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं। इसे देखकर हमारी संस्कृति की इस अमूल्य गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रश्नचिह्न नजर आने लगता है। अत: विद्यार्थी और शिक्षक दोनों का ही दायित्व है कि वे इस महान परंपरा को बेहतर ढंग से समझें और एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करें।

माता-पिता, परिवार के सभी सदस्य, दोस्त, मिलने-जुलने वाले और शिक्षक अच्छे संस्कारों से हमारे देश के भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है साथ ही छात्रों को भी चाहिए कि वो अपने जीवन में अच्छे गुणों को आत्मसात करके अच्छे देश के निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाएं।

हर हाल में अपने शिक्षकों की गरिमा को बनाए रखें तथा शिक्षकों को भी चाहिए कि वे अपने छात्र-छात्राओं का ध्यान रखते हुए उनके साथ छेड़छाड़, मारपीट न करें तथा एक अच्छे नागरिक होने का अपना कर्तव्य निभाएं। बदलते दौर में मोबाइल तथा सोशल मीडिया प्लेटफार्म के कारण बच्चों का शिक्षण प्रति ध्यान भटकता जा रहा है। अत: बच्चों को समझना होगा कि शिक्षा से ही वह सबकुछ हासिल किया जा सकता जो आप चाहते हैं।

“शिक्षक साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।” मुझे गर्व है कि मैं शिक्षक हूं। यह कहना चाणक्य का था। इन्होंने नंद वंश के समूल नाश की शपथ ली थी।अपने योग्य शिष्य चंद्रगुप्त के माध्यम से नंद वंश काविनाश किया भी। अर्थात एक शिक्षक अपने मार्ग दर्शन शिक्षा से विद्यार्थी जो कच्चे घड़े के समान होता है। जैसा चाहे वैसा अच्छा-बुरा बना कर समाज,देश,काल,परिवेश का निर्माण कर सकता है।

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