नकली पानी बेचने वालों पर कब लगेगा स्थायी ताला।

ब्यूरो, ऋषिकेश।
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ऋषिकेश के योग नगरी रेलवे स्टेशन पर नकली पानी की 30 पेटियों का जब्त होना केवल एक खबर भर नहीं, बल्कि रेलवे सुरक्षा व्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच फैले एक बड़े खतरे की ओर इशारा करता है। यह घटना हमारे सिस्टम की उस कमजोरी को उजागर करती है, जहां थोड़ी-सी लापरवाही यात्रियों की सेहत के साथ खुला खिलवाड़ बन जाती है।
जीआरपी की तत्परता और कार्रवाई निश्चित रूप से प्रशंसनीय है, परंतु यह सवाल अनुत्तरित है कि आखिर यह अवैध जल-व्यापार बार-बार स्टेशन परिसर तक कैसे पहुंच रहा है? बार-बार की कार्रवाइयों के बावजूद इस तरह की घटनाएं यह बताती हैं कि या तो कहीं न कहीं मिलीभगत है या फिर निगरानी तंत्र पूरी तरह असफल हो चुका है।
रेलवे स्टेशन जैसे संवेदनशील सार्वजनिक स्थान पर जब कोई व्यक्ति खुले बाजार से अनधिकृत पानी खरीदकर यात्रियों को परोस सकता है, तो यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि मानव जीवन के प्रति घोर असंवेदनशीलता है। यात्रियों में से कई वरिष्ठ नागरिक, बीमार और बच्चे होते हैं, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता सीमित होती है। ऐसे में घटिया और संदिग्ध पानी उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
यह वक्त है जब रेलवे प्रशासन को फायरफाइटिंग मोड से बाहर निकलकर इस समस्या का स्थायी और संरचनात्मक समाधान तलाशना होगा। एक-दो पेटियां जब्त कर देने से कुछ नहीं बदलेगा, जब तक कि सप्लाई चैन, जिम्मेदार व्यक्ति और स्थानीय संलिप्तता की पूरी परतें नहीं खोली जातीं।
इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि यात्रियों को जागरूक किया जाए। उन्हें जानकारी दी जाए कि केवल अधिकृत कंपनियों का सीलबंद पानी ही खरीदे और किसी ठेले या संदिग्ध स्रोत से आपूर्ति ली गई वस्तु से बचें।
हम यह भी नहीं भूल सकते कि ऋषिकेश एक अंतरराष्ट्रीय तीर्थ और पर्यटन स्थल है। यहां आने वाले यात्रियों की संख्या लाखों में है, और इस तरह की घटनाएं शहर की छवि को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
अंततः, नकली पानी बेचने का यह खेल तभी रुकेगा जब दोषियों को न केवल पकड़ा जाएगा, बल्कि उन्हें ऐसी सजा मिलेगी जो दूसरों के लिए मिसाल बन सके। साथ ही, जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका पर भी निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी।