इक्कीसवीं सदी में भी महिलाओं को बिमार लोगों को कांधों पर लादकर पहुंचाना पड़ता है, अस्पताल।

चमोली।
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जहां एक ओर सरकारें देशभर में सड़कों के जाल बिछाने के लाख दावे कर रही हैं। वहीं उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के समीप सेरा तेवाखर्क गांव के ग्रामीण आज भी एक अदद सड़क मार्ग के बिना बिमार लोगों,प्रसूता महिलाओं को डंडी में कांधों पर लादकर अस्पताल लेकर जाने के लिए अभिशप्त हैं।
सेरा-तेवाखर्क गांव के भगवत सिंह को उपचार के लिए ऋषिकेश भेजने के लिए गांव की महिलाओं ने उन्हें डंडी में बिठाकर कांधों पर लादकर सड़क मार्ग तक पहुंचाया जहां से उन्हें उपचार के लिए ऋषिकेश भेजा गया।
निवर्तमान ग्राम प्रधान हेमा बिष्ट ने बताया कि भगवत सिंह का चार साल पहले एक मोटर दुर्घटना में पैर बुरी तरह टूट गया था। जिसमें जगह-जगह राडें डाली गई हैं और उनको समय-समय पर उपचार के लिए गांव से ऋषिकेश अस्पताल पहुंचाना पड़ता है।
उन्होंने बताया गांव के अधिकांश पुरुष रोजगार के लिए बाहर रहते हैं ऐसे में बिना मोटर मार्ग के किसी भी बिमार लोगों या प्रसूति वाली महिलाओं को भी गांव की महिलाओं को ही कांधों पर लादकर दुर्गम पहाड़ी पैदल मार्ग से लोगों को अस्पताल तक पहचाना पड़ता है।
उन्होंने कहा एक तरफ सरकार सड़कों का जाल बिछाने का दावा करते नहीं थक रही वहीं उनको इस इक्कीसवीं सदी में भी बिना मोटर मार्ग के आदिकाल सा जीवन जीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
गांव के सामाजिक कार्यकर्ता हुकमसिंह बिष्ट ने बताया कि लंबे संघर्षों के बाद 2021 में उनके गांव के लिए लोनिवि द्वारा सड़क का निर्माण कार्य शुरू तो किया गया। लेकिन रामगंगा नदी पर बनने वाले चालीस मीटर स्पान का पुल के लिए धन मुहैया नहीं हो पा रहा जिसकारण मोटर मार्ग का कार्य रुका हुआ है। जिससे गांव के लोगों को तमाम मुश्किलें झेलनी पड़ रही है।