अक्षय तृतीया के दिन हृषिकेश नारायण की 108 परिक्रमा का फल,भगवान बदरी विशाल के दर्शन समान

ब्यूरो, ऋषिकेश।
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श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल पर प्रपन्नाचार्य महाराज ने अक्षय तृतीया के महत्व को बताते हुए कहा कि उत्तराखंड में तीर्थनगरी ऋषिकेश को योग और ध्यान की नगरी कही जाती है। इस नगरी को भगवान विष्णु की नगरी भी कही जाती है। इतना ही नहीं ऋषिकेश का नाम भगवान विष्णु के नाम हृषिकेश से लिया गया है। इस पतित पावनी भूमि पर भगवान विष्णु स्वयं विराजमान हैं। ऐसे ही एक मंदिर जहां भगवान विष्णु 12वीं शताब्दी से स्थापित है। ऋषिकेश के मुख्य बाजार झंडा चौक पर स्थित भरत मंदिर। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इस प्राचीन मंदिर की कथा स्कंद पुराण के केदारखंड में भी वर्णित है।
भगवान विष्णु ने ऋषियों को दिया था, दर्शन
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ऐसी मान्यता है, कि इस मंदिर में रैभ्य ऋषि एवं सोम ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको दर्शन दिए और उनके आग्रह पर अपनी माया के दर्शन कराए। ऋषि ने माया के दर्शन कर भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा कि प्रभु आप अपनी माया से मुक्ति प्रदान करें। भगवान विष्णु ने तब ऋषि को वरदान दिया कि आपने इन्द्रियों (हृषीक) को वश में करके मेरी आराधना की है, इसलिए यह स्थान हृषीकेश कहलाएगा और मैं कलियुग में भरत नाम से यहां विराजमान रहूंगा। हृषीकेश के त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान के बाद जो भी प्राणी मेरा दर्शन करेगा, उसे माया से मुक्ति मिल जाएगी।
बद्रीनारायण के दर्शन के बराबर मिलता है, पुण्य लाभ
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बता दें, कि भरत मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति उसी शालिग्राम शिला से निर्मित है, जिस शिला से बद्रीनारायण की मूर्ति निर्मित की गई है। हर वर्ष बसंत पंचमी के दिन हृषीकेश नारायण भगवान श्री भरत को हर्षोल्लास के साथ त्रिवेणी संगम पर स्नान के लिए ले जाया जाता है। धूमधाम से नगर भ्रमण के बाद पुनः मंदिर में प्रतीकात्मक प्रतिष्ठत किए जाते हैं। भक्तों ने बताया कि इस मन्दिर में अक्षय तृतीया के दिन जो भी भक्त 108 परिक्रमा करता है और श्री भरत के चरणों के दर्शन करता है। उसकी भगवान भरत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। उस भक्त को भगवान श्री बद्रीनारायण के दर्शन के पुण्य-लाभ की प्राप्ति भी होती है। इसके अलावा भरत भगवान के मंदिर में आज भी पुरातन कलाकृतियों के अवशिष्ट मौजूद है।